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Lekhny post -29-Nov-2023 कविता

*उल्फ़त में तड़पते रहे*

मोहब्ब्त ने तेरी फिर एक इशारा कर दिया,
गिरते हुए को फिर से एक सहारा कर दिया ।
हम समझ रहे थे इश्क मे सब फ़ना ही होते हैं,
तेरी नज़र ने बेसहारा को फिर सहारा कर दिया ।

क़ातिल तेरी चाह में हम अदनान हो गए,
राहों में मिलें थे कभी फिर गुमनाम ही गये ।
पाकर तेरी हमदर्दी का आसरा उल्फ़त में,
हम तेरे मोहल्ले में फिर बदनाम हो गए ।

खुली राहें मोहब्ब्त की बस एक तेरा इंतजार बाकी है,
मिले थे सदा तन्हाईयों ने हम  बस तेरा इज़हार बाकी है ।
इजाजत उल्फ़त की मौके पे तुझसे लेने चले हम सनम,
उठाया था चिलमन  बस करना तेरा दीदार अभी बाकी है ।

महरबी तेरी दर्द दवा उल्फ़त में नाकाम हो गई,
रोशनी सितारों की भी नभ में अब साकाम हो गई ।
अमावस्या की अंधियारी रातों में जिसे ढूंढा हमने,
वो तेरी जुगनू की चमक पाते ही फिर बदनाम हो गई ।

खामियाने उल्फ़त की सजा पाकर सरे राह भटकते रहे,
तन्हा ख़ोजा जिन्हें कूचे मे वों नुक्क्ड़ पे मटकते रहे ।
हम उन्हें मोहल्ले की चौपालों पर तलाशते रहे *कौशल
वो सँग रकीबों के थे  हम तन्हा उल्फ़त में तड़पते रहे ।

   *के,के,कौशल,*
इन्दौर, मध्यप्रदेश

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2 Comments

Reena yadav

29-Nov-2023 07:41 AM

👍👍

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Gunjan Kamal

29-Nov-2023 07:20 AM

👏👌

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